संदेश

Bandhan

एक शुबह मेरे जीवन में , अलसाई सी आई थी कुहरा घना छाया था, उसमे बदली भी घिर आई थी शयद मेरा मन भी उस दिन, दुखी था या घबराया था बारिष की बूंदा बंदी ने सोच का पर्त हटाया था तेज हवा का झोंका खाकर बादल जब लहराया था तो जीवन अपना व्यर्थ लगा था, जेल नजर घर आया था सरे रिश्ते जंजीरों से जकड़े मुझको जाती थी सर्द हवा का झोंका खाकर आंखे नाम हो आती थी पता नहीं मै, कब और कैसे घर से बहार निकल चला चेतना लौटी तब जब मेरे सामने कोई नदी मिला मुक्त नदी की जलधारा ने हूक उठा दी एक मन में काश नदी होता मै भी तो क्यों परता जगबंधन में तभी अचानक मन में मेरे नाम नदी का याद आया विजली चमकी कही दूर में और किनारा थर्राया तभी कही से मुझे नदी के बंधन का एहसास हुआ तटों से लरकर नदी के लहरे लौट के जब निराश हुआ बंधन बिन अस्तित्व कहा क्या बंधन कभी भी हरा है ? नदी तभी तक नदी है जबतक दोनों ओर किनारा है मुक्त होने की छह में उसने सैकरों वर्ष गुजारा है कभी गिराया चट्टानों को कभी तटों से हारा है जिसे तोरकर बहना चाहती, क्या वह मात्र

Ek Barsat

एक बरसात ऐसी भी गुजरी, प्रियतम के बलों पे आकर, सावन कि घट ठहर के गुजरी एक बरसात ऐसी भी गुजरी, संग था उनका कितना प्यारा, विहंस रहा था जीवन सारा, भींगा तन था, मन भी भींगा, भींगी पलकें ठहरी ठहरी, एक बरसात ऐसी भी गुजरी, आंखे उनकी बोल रही थी, सरे परदे खोल रही थी, हाथ था उनका हाथ में मेरे, नजर थी उनकी नजर पे ठहरी, एक बरसात ऐसी भी गुजरी, कानो कि बाली पे पानी, गलों की लाली पे पानी, बालों के लट भींग के उनके कंधे पर थी बिखरी बिखरी, एक बरसात ऐसी भी गुजरी, साडी सक्ती लगा के अपना सावन यूँ ही बरस रहा था बहुत बाँधने पर भी मेरा मन कुछ eais

Kahan Hai

khaM hO vaoa AasamaaM khaM hO, vaao AaiSayaaM khaM hO vaoa AQanaMgao baccaaoM ka karvaaM khaM hO maaM ka vaoa AaMcala, ipta ka vaoa knQaa Baa[ ik ]MgalaI pkrkr voaa calanaa bahna ke vaoa naKro,, vaoa KolaaoM ko Jagaro vaoa bacapna ko ballao ka Cllaa khaM hO pta nahIM voaa CaoTa saa Apnaa jahaM khaM hO vaoa AasamaaM khaM hO, vaao AaiSayaaM khaM hO vaoa  ma@ko o ko KotaoM maoM Cupnaa Cupanaa vaoa sarsaoaM ke fUlaoaM maoM JaUmanaa Jaumaanaa vaoa poDaoM ko JaurmauT sao baoroM cauranaa Cup Cup ko maaM sao, nadI maoM nahanaa vaoa pkrI ga[ maClaI kI sabjaI khaM hO pta nahIM voaa CaoTa saa Apnaa jahaM khaM hO vaoa AasamaaM khaM hO, vaao AaiSayaaM khaM hO vaoa bakrI kI maoM maoM vaoa BaOMsaoaM kI jamha[ vaao gaayaoaM ka rmBaanaa vaoa kutaoM kI laDa[ vaoa maolao mao naovalao AOar saaMp kI LDa[ vaoa bauZo baabaa jaI kI AaiKrI ivada[ vaoa ApnaoaM ko irstoaM kI garmaahT khaM hO pta nahIM voaa CaoTa saa Apnaa jahaM khaM hO vaoa AasamaaM khaM
कामकाजी नारी पति के तानों से, घर के सारे कामों से, आफिस के इंतजामो से, परेशांन हो गयी थी वो बिखरते हुए सपनों से, पराये हुए अपनों से मन में उठते प्रश्नों से मजबूर हो गयी थी वो टूटते अरमानो से, दुनिया के व्यंगबानों से, शरीफ  बेईमानों से, बेजार हो गयी थी वो ललचाती नजरों से, हरदिन के सफरों से झूठी सच्ची ख़बरों से, आहत सी हो गयी थी वो जीने कि अपनी चाहत से, वक्त कि नजाकत से अपनों कि सियासत से, बदनाम हो गयी थी वो हर दिन होता था बोझिल , हर रत बहुत भारी क्योंकि थी वो भारत कि, एक कामकाजी नारी वो फिर भी जिए जाती थी, हंसती थी हंसती थी आखिर अपनों के लिए ही तो पैसे भी कमाती थी

Kuch Log

युग धर्म सीखते नहीं कुछ लीग जिन्दगी भर स्व धर्म भूलते नहीं कुछ लोग जिन्दगी भर करते नहीं समझौता स्वाभिमान से कभी भी अभिमान भी करते नहीं कुछ लोग जिन्दगी भर रह जाते है पीछे भौतिकता के  दौर में अफ़सोस भी करते नहीं कुछ लोग जिन्दगी भर आराम कि चाहत में करते है वो परिश्रम संघर्ष में ही जीते है कुछ लोग जिन्दगी भर

Dadu ki Duniya Me

Dadu ki Duniya Me
जुदाई है ख़ुशी नहीं मिलने कि गम तो जुदा होने का है चार लम्हों कि ख़ुशी है , बाद तो रोने का है हम मिले भी तो ऐसे कि ट्रेफिक के सिग्नल पे मिले, जल भी गयी बत्ती हरी तो गम लाल के बुझने का है गर हंस रहे होते कही पे एक भी तो कम न था पर यूँ हुए हालत दोनों अपनी जगह रोने को है पर चार दिन कि जिन्दगी रोकर गुजारें क्यों कहीं उनके सिवा भी इस जहाँ में रास्ते जीने कि है पर याद रखना यार मेरे जोश हो दिल में अगर तो जिन्दगी का सही मजा तन्हा ही जीने में है ये बाद मैंने सीखी नहीं है दुनिया के उसूलों से ये वो मेरे जज्बात है जो मेरे ही शीने में है है आखरी ये बात जो सोची है मैंने भी सदा सुख शांती का अनुभव तो सन्यास ले लेने में है